सामान्यतः भूमि का उचित प्रबन्ध कर वैज्ञानिक विधि से फसलों को उगाने का अध्ययन सस्यविज्ञान ( Agronomy ) कहलाता है। दूसरे शब्दों में, पौधों से भोजन, ईंधन, चारा एवं तन्तु (फाइबर) की प्राप्ति के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को सस्यविज्ञान कहते हैं। सस्यविज्ञान के अन्तर्गत पादप अनुवांशिकी, पादप क्रियाविज्ञान, मौसमविज्ञान तथा मृदा विज्ञान समाहित हैं। यह जीवविज्ञान, रसायन विज्ञान, अर्थशास्त्र, पर्यावरण, मृदा विज्ञान तथा आनुवांशिकी आदि विषयों का सम्मिलित अनुप्रयोग है। वर्तमान में सस्यवैज्ञानिक अनेकों कार्यों में संलग्न हैं, जैसे- अन्न उत्पादन, अधिक स्वास्थ्यकर भोजन का उत्पादन, पादपों से ऊर्जा का उत्पादन आदि। सस्यवैज्ञानिक प्रायः सस्य आवर्तन (crop rotation), सिंचाई एवं जलनिकास, पादप प्रजनन, पादपकार्यिकी (plant physiology), मृदा-वर्गीकरण, मृदा-उर्वरकता, खरपतवार-प्रबन्धन, कीट-प्रबन्धन आदि में विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं।
सी. आर. बाल के शब्दों में-
सस्यविज्ञान वह कला एवं विज्ञान है जिसके अंतर्गत भूमि का वैज्ञानिक ढंग से प्रबंध तथा पौधों को उगाने का प्रयत्न किया जाता है, जिससे कि भूमि, पानी तथा प्रकाश की प्रत्येक इकाई से कम से कम खर्चे के साथ,भूमि की उर्वरा शक्ति को स्थिर रखकर, अधिक से अधिक तथा ऐक्षिक किस्म की फसल का उत्पादन किया जा सके।
स्थायी कृषि ( Sustainable Agriculture ) के सन्दर्भ में -
सस्यविज्ञान वह विज्ञान है जिसके अन्तर्गत इच्छित फसलों की गुणवत्ता को बनाये रखते हुये भूमि, जल और प्रकाश की प्रति इकाई के उचित प्रयोग द्वारा अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जाता है।
सस्यविज्ञान, कृषि के क्षेत्र में भौतिक, रसायनिक व जैविक ज्ञान के द्वारा लाभकारी फसल उत्पादन में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है। सस्यविज्ञान के सिद्धान्तों का विस्तृत अध्ययन कम खर्च के द्वारा तथा कम से कम भूमि क्षीणता ( Degradation ) के साथ उपयुक्त उत्पादन लेने में सहायक होता है।
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